क्या द्वंद को पूरी तरह से छोड़ पाना मुमकिन है?
प्रश्न-
कहते हैं कि इस ब्रह्मांड में समय का कोई अस्तित्व नहीं है। मेरा प्रश्न ये है कि क्या हम शरीर में रह कर यह महसूस कर सकते हैं? योग वशिष्ठ में लीला की कहानी में, लीला को पूरी तरह से द्वंद का त्याग करना पड़ता है। कृपया इसे थोड़ा समझाएं।
उत्तर-
हाँ, इस शरीर में रहते हुए द्वंद का त्याग किया जा सकता है। क्योंकि यह इस शरीर में रहकर ही संभव है इसलिए हम आध्यात्मिक अभ्यास कर रहे हैं, ज्ञान में आगे बढ़ रहे हैं और ध्यान कर रहे हैं।
अध्यात्म के इस स्तर पर ये अद्भुत लगता है पर इसमें कोई चमत्कार नहीं है। यह सबसे उच्च स्तर की सजगता, जागरूकता और साक्षित्व का सहज परिणाम है।
वह व्यक्ति:
- जिसकी चेतना राग और द्वेष की वासनाओं से पूरी तरह से मुक्त हो गयी है।
- जो यह समझ जाता है कि वह शरीर नहीं है।
- जो इस शरीर में रहते हुए उसकी भौतिक सीमा को पार कर जाता है।
- जो अपनी चेतना को जान लेता है।
- जो संपूर्ण संसार को एकमात्र चेतना जानता है।
वह विदेही कहलाता है।
अंग्रेजी की एक फ़िल्म है ‘मैट्रिक्स’। इसमें एक सन्यासी बालक एक चम्मच को देखता है और वह चम्मच उसके देखने मात्र से मुड़ जाती है। नीओ चकित होकर चम्मच हाथ में ले लेता है।
बालक कहता है, “अगर आप चम्मच पर ध्यान देंगे तो नहीं कर पाएंगे। सच को ध्यान से देखें।”
नीओ पूछता है, “कैसा सच?”
बालक कहता है, “यहां कोई चम्मच नहीं है। यह पूरी सृष्टि एक चेतना ही है। इस सत्य को देखें। फिर आप देखेंगे कि आपकी चेतना/आत्मा मुड़ती है, चम्मच नहीं।
सीन देखें – https://www.youtube.com/watch?v=XO0pcWxcROI&feature=emb_logo
यह संसार एक स्वप्न से भिन्न नहीं है। आपको केवल जागने की आवश्यकता है।
क्या आपने स्वप्न देखते समय अचानक कभी महसूस किया है कि आप स्वप्न देख रहे हैं? ऐसा महसूस करते ही आप उस स्वप्न से बाहर आ जाते हैं। क्या ऐसा हुआ है आपके साथ?
उसी तरह, इस संसार के स्वप्न से बाहर निकलने के लिए, केवल एक निर्वाण (आत्मज्ञान) का पल पर्याप्त होता है। फिर भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल का विभाजन गिर जाता है । द्वैत गिर जाता है। केवल अद्वैत रह जाता है।
पर याद रहे, हर पल निर्वाण की तृष्णा करने से निर्वाण प्राप्त नहीं होगा। संकल्प छोड़ देने से भी काम नहीं चलेगा। अध्यात्म के मार्ग पर सहनशीलता और दृढ़ निश्चय से चलते रहें।
निर्वाण प्राप्ति का पल केवल शून्य मन से उपजता है। मन शांत रखें।
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